Real Horror Stories In Hindi For Reading : वो परछाई एक काल्पनिक कहानी !

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  • कहानी का शीर्षक –  ये कहानी (Real Horror Stories In Hindi For Reading) पूरी तरह काल्पनिक है इसमे एक लड़का रचित जो उत्तर प्रदेश के बनारस शहर से भारत की राजधानी दिल्ली में एक कॉम्पनी के लिए काम करता है । और वहाँ उसके साथ कुछ अजीवों गरीब घटनाएं घटित होती हैं । रात उसे एक परछाई दिखाई देती है जिसको लेकर वह बहुत परेशान होता है रचित की अपनी ही ऑफिस में काम करने वाली नेहा से दोस्ती हो जाती है । और नेहा उसे उन तमाम घटनाओं का मतलब समझाती है तथा उनसे निपटने के हल भी बताती है ।

Horror Stories In Hindi For Reading

रचित जो एक कंपनी की सेल्स टीम का हेड है और पेंटिग का शौक रखता है ! रचित को इस नए शहर दिल्ली में आए हुए यही कोई 18 से 20 दिन ही हुए थे । इस बीच मां पापा से दूर रहने का अहसास उसके मन को हर पल सता रहा था । उसे याद है जब वह अपने शहर बनारस से दिल्ली के लिए घर से निकल रहा था तो मां ने उसका माथा चूम के कहा था बेटा संभल के रहना और अपने कांपते हाथों से एक तावीज उसके गले में पहना देती है ।

रचित आज अपने बॉस के साथ मीटिंग कर थोड़ा देरी से घर आया था हफ्ते का आखिरी दिन और शनिवार बार की रात घड़ी में साढ़े ग्यारह बज रहे थे और रचित अपने कमरे में बैड पर लेटे हुए एक टक दीवार पर चढ़ती हुई छिपकली पर अपनी नजरें टिकाए हुए था !!

कि अचानक किसी के जोर से चिल्लाने की आवाज साफ साफ सुनाई दी , आवाज किसी लड़की की लग रही थी तो रचित ने झट से अपनी खिड़की से झांक कर देखा , इधर उधर देखने पर उसे एक दूर स्ट्रीट लाइट के नीचे परछाई दिखाई देती है।

Real Horror Stories In Hindi For Reading वो परछाई एक काल्पनिक कहानी !

वह अपने रूम से भाग कर नीचे आता है और उस परछाईं का पीछा करने की सोचता है परंतु उसे दूर-दूर तक कोई दिखाई नही देता है !

रचित अपने चहरे पर डर लिए हुए पसीने से लथपथ भारी कदमों से सीढ़ियों से चढ़कर अपने कमरे में आ जाता है । रचित अपने गले में पहले हुए तावीज को स्पर्श करता है और मां को याद करते हुए, उसका ध्यान बार बार उस आवाज की ओर खिंचा चला जा रहा था ! वह आवाज उसके कानों में अभी भी गूंज रही थी !

कमरे में रखे कैनवास पर नज़र पड़ी तो उसने देखा कि कलर पैलेट से कुछ रंग बेतरतीव बिखरे पड़े थे और किसी आधी अधूरी पेंटिग पर पर बनें चित्र में एक परछाईं साफ दिखाई दे रही थी ! ये वही परछाईं थी जो उसने अभी अभी कुछ देर पहले देखी थी जिसकी तलाश करने वह नीचे भी गया था ।

यह देखकर उसे और आश्चर्य होता है कि आखिर यह चित्र कैसे बन गया रचित इस बीती हुई घटना को डायरी के पन्नों मे समेटने लगा और कुछ देर लिखने के बाद रचित ने दीवार पर लागि घड़ी की तरफ नज़र घुमाई तो पौने 2 बज़ रहे थे । रचित की आँखों ने नींद दूर दूर तक ओझल थी । फिर भी बह अपने विस्तार पर तकिया को सर से लगाकर आँखों को मूँद कर सोने की भरपूर कोशिश करता है और सो जाता है ।

रविवार की सुबह रचित देर से उठा और सबसे पहले उसकी नज़र आधी अधूरी पेंटिंग पर पड़ी तो देखता है कि रात को बनी हुई “ वो परछाई” पेंटिंग से गायब थी । यह देख रचित अंदर से बहुत डर जाता है ।

मोबाईल को हाथ में लेता है तो स्क्रीन पर मा की काल का अलर्ट नोटिफिकेसन बलिंक कर रहा था । वह विस्तार से उठता है और नंगे पाव ही लौव की तरफ जाते हुए माँ को फोन करता है । उधर से माँ की आवाज़ की आवाज आई “कैसे हो बेटा” रचित के भारी आवाज़ में कहा सब ठीक है माँ ! आप लोग कैसे हो ?

उधर से मां कहती हैं बेटा हम लोग तुम्हें मिस कर रहें हैं और तेरी पसंद के आलू के पराठे बनाए हैं तेरे पापा तो गार्डन में जमीन पर बैठे गुप्ता जी और हरीश भाई के साथ योग कर रहे हैं । आज रविवार जो है न ! रचित ने आगे ज्यादा बात नहीं की और फिर बात करने का बहाना देकर बात को खत्म कर दिया ।

रचित के जहन में रात का पूरा किस्सा दिलों दिमाग में तैर रहा था । पूरा दिन रचित अपने कमरे में ही रहा और अब 5 बजे बह अपने कलौनी के बाहर गार्ड अंकल के साथ चाय पीने जाता है और रात की घटना का जिक्र करता है गार्ड अंकल पूरी बातों को सुनने के बाद रचित को उसके मन का वहम बताकर उसे समझाने की कोशिश करते हैं और गेट पर ही रुक जाते हैं ।

Real Horror Stories In Hindi For Reading वो परछाई एक काल्पनिक कहानी !
Real Horror Stories In Hindi For Reading वो परछाई एक काल्पनिक कहानी !

 

Real Horror Stories In Hindi For Reading: अब रचित रूम में आ जाता है और उस पेंटिंग पर फिर से काम शुरू कर देता है वो अपने खयालों की उधेड़बुन में न जाने क्या क्या पैंट करता रहा और फिर भी उसके मन को कोई भी पेंटिंग जम ही नहीं रही थी । कुछ देर बाद उसने कपड़े चेंज किए और रोड की तरफ आकार ऑटो से एक रेस्टोरन्त की तलाश करते हुए निकाल जाता है । थोड़ी ही दूर पर एक शानदार और लाइटिंग की चमक धमक वाला रेस्टोरेंट दिखाई देता है तो रचित ऑटो वाले भैया को रोकने के लिया कहता है और झट से 20 रुपये देकर उतर जाता है ।

जैसे ही अंदर पहुंचता है तो वहाँ पर उसे अपने ही साथ काम करने वाली नेहा मिल जाती है । दोनों से साथ में बाते करते करते डिनर किया और अब रचित अपने आप में अच्छा महसूस कर रहा था । रचित ने विल पे कर दिया और दोनों एक साथ बाहर आकार अपने अपने घर जाने लगते हैं नेहा ने उसे एक स्माइल के साथ बाय बोला और अपने घर की तरफ चली जाति है ।

इधर रचित भी ऑटो वाले को हाथ देने ही वाला होता है कि अचानक कोई उसके कंधे पर हाथ रखता है जो उसको अपनी तरफ खीच लेता है परंतु जैसे ही एक दम झटके से रचित मुड़कर पीछे देखता है तो उसके पैरों के नीचे से मानो जमीन हर गई हो और आवाज़ तो उसके गले में ही कहीं जैसे अटक सी गई हो । सामने एक भयानक कुरूप वाली कोई ऐसी लड़की थी जिसने खुद को कालें रंग के एक बड़े से कपड़े में खुद को ढका हुआ था वाल बिखरे हुए थे रूप तो ऐसा था कि आज से पहले कभी रचित ने देखा ही नहीं था ।

पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और हाथ पैर बुरी तरह कांप रहे थे । कि अचानक एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी भैया कहाँ चलोगे ? जैसे ही रचित की नज़र हटी सब गायब हो गया रचित ने ऑटो वाले को विना कुछ कहे ही आगे चलने का इशारा किया और किसी भुत की तरह सीट पर बैठ गया ।

रचित को इस घटना ने अंदर से पूरी तरह झकझोर दिया था । वह खुद भी इतना हैरान था की ये सब उसके साथ क्या हो रहा था । ऑटो वाले ने माल रोड से जैसे ही यू टर्न लिया वैसे ही रोड लाइट से आती रोशनी धीमी होती चली गई और कुछ देर बाद रचित अपने कॉलोनी के बाहर गेट पर ऑटो से उतरकर बदहवाश स खड़ा था ।

गार्ड अंकल ने रचित को खड़ा देख अपने पास बुलाया , कहा बैठ जाओ फिर उन्होंने जो बताया उसे सुनकर रचित आश्चर्य से भर गया उन्होंने कहा बेटा ये जो तुम्हारे साथ हो रहा है वो यहाँ रहने वाले किसी न किसी के साथ आए दिन होता है , रचित से बड़ी उत्सुकता से पूछा ऐसा क्यों होता है ।

गार्ड अंकल ने बताया कि 2 साल पहले एक लड़की इसी कालोनी में रहने आई थी । वह बहुत हसमुक और सबसे प्यार से बोल करती थी । वह कॉलेज आते जाते वक्त अक्सर लिफ्ट मांग लिया करती थी । याद है मुझे उस दिन एक किसी  मनचले लड़के ने उसके साथ बदसलूकी की , वह अंदर से इतना टूट गई थी की 2/4 दिन तक कहीं भी बाहर नहीं निकली और बहुत खामोश रहने लगी थी ।

फिर अचानक एक दिन न जाने क्या हुआ था की उसने अपने आप को गले में फंदा लगाकर खत्म कर दिया । आस पास के लोग तो बताते हैं कि कुछ लड़के उसके घर में घुस आए थे उन्होंने ही उसे मार दिया  पर सच क्या था भगवान जाने बेटा !

मैं तुम्हें मशवरा देता हूँ बच के रहना वो जिसको अपने बस में कर लेती है फिर उसे अपने साथ ले जाती है । अब रचित और डर गया ।

हल्के कदमों से रूम की तरफ जाते हुए रचित ने नेहा को काल करके पूरा किस्सा सुनाया । नेहा को सब समझ आ जाता है क्यों कि उसकी एक दोस्त के साथ भी कुछ ऐसा ही काली परछाई का चक्कर था उसके घर के पास एक पुराने मंदिर के पुजारी ने उसे कुछ उपाय करने को कहा था तभी से वह ठीक हुई थी ।

नेहा ने रचित को सुबह अपने घर आने को कहा ये सुनकर रचित को थोड़ा राहत मिली । फोन पॉकेट में रखकर  कमरे का दरवाजा के पास पहुंचकर रचित पूरे मन से और तन से भी डरते हुए लॉक खोलता है । लाइट ऑन करता है तो कमरे में बेतरती फैला सामान और बैड पर पड़े कपड़े मानो ऐसे लग रहे थे जैसे महीनों से इस कमरे में कोई आया ही न हो । रचित ने कमरे को अंदर से बंद किया और सारा समान ठीक किया ।

फिर पसीने की बदबू के कारण बाथरूम में नहाने चल दिया । देर तक नहाने के बाद तैयार हुआ तो देखा घड़ी में पौने ग्यारह बज रहे थे । रचित ने डायरी उठाई और लिखने बैठ गया । उसके साथ जो घटनाएं घटित होती अक्सर डायरी में लिख देता था । ऐसे ही तो शौक थे रचित के उसे लिखना , और पेंटिंग करना बहुत अच्छा लगता था ।

दिन भर से मन थोड़ा बोजल स हो गया था , सो बिस्तर पर लेट गया । इस रात भी बार बार रचित अजीव अजीव आवाजें सुनता रहा । लेकिन उसने अनसुना किया अब सुबह चाय के साथ दो टोस्ट नसता कर । तैयार होके नेहा के घर जाने की तैयारी करता है । कुछ ही देर के बाद रचित नेहा के घर था । फिर नेहा के साथ पुजारी जी से मिलने के लिए दोनों निकलते हैं ।

रचित पूरा वाक्यांश पुजारी जी को बताता है । पुजारी जी कुछ देर ध्यान करने के वाद बताते हैं तुम्हारे ऊपर काली परछाई का साया है । रचित एक टक होकर पूछता है अब हम क्या करें ?

पुजारी जी उसे एक उपाय करने की सलाह देते हैं । और कहते हैं तुम डरना मत ! अगर डर गए तो फिर वो कभी तुम्हें नही छोड़ेगी ।

रचित राजी हो जाता है और पंडित जी उसके लिए एक यज्ञ करना शुरू करते हैं रचित जो सामने बैठ जाता है और नेहा उसके आँखों पर पट्टी बांध देती है । पुजारी जी तमाम मंत्र और हवन के जरिए उस परछाई को पास बुलाते हैं ।

अब परछाई रचित के अंदर समाहित हो जाती है और जोर जोर चीखने चिल्लाने लगती है । नेहा भी बहुत डर जाती है । पुजारी जी भी घायल हो जाते हैं परंतु यज्ञ को बंद नहीं करते लगभग 1 घंटे के बाद काली परछाई को पुजारी एक मटकी में कैद कर देते हैं ।   इशारा करते हुए रचित और नेहा को इस मटकी को किसी सुन शान जगह में दवाने का आदेश देते हैं ।

रचित शहर के बाहर एक खंडहर की तरफ जाने का फैशला करता है उस मटकी को दबाने के लिए नेहा भी उसके साथ जाती है । एक दूर पहाड़ी पे चड़ने के बाद खंडहर में मटकी को दवा देता है । और एक लंबी सांस लेता है ।

दोनों पूरी तरह थके हारे घर आते हैं नेहा के माँ और पापा रचित को बहुत स्नेह से खाना खिलाते हैं और फिर से आने का बुलावा देते हैं । नेहा के चहरे पर खुशी थी रचित अब बहुत हल्का महसूस कर रहा था उसने नेहा का हाथ थाम के धन्यबाद दिया । और अब रचित पूरी तरह से ठीक था । वह माँ को फोन करके बताता है कि पिछले 2 दिन में उसके साथ क्या क्या घटित हुआ है । माँ वेटे से मिलने के लिए दिल्ली आने को कहती है ।

और बस यही पे कहानी खत्म होती है । अगर आपको इसी तरह की कोई और कहानी चाहिए तो हमे कमेन्ट कर सकते हैं ।

 

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