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Nidhi Narwal Poetry In Hindi | निधि नरवाल शायरी
नज़र | Nazar By Nidhi Narwal
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
नजर चढ़ती है खूब,
नजर को शराब लिखना चाहती हूं।
नजर अच्छी नहीं है जमाने की,
नजर को खराब लिखना चाहती हूं
नजर का इंतजार करती हैं नजरें,
नजर को खिताब लिखना चाहती हूं।
नजर इजहार आई है बनकर,
नजर को गुलाब लिखना चाहती हूं।
नजर तेज लहर सी है,
नजर को सैलाब लिखना चाहती हूं।
नजर पढ़ी जाती भी है,
नजर को किताब लिखना चाहती हूं।
नजर कितनों से मिली है उसकी पर,
नजर का हिसाब लिखना चाहती हूं।
नजर से मारे गए हैं आशिक,
नजर को तेजाब लिखना चाहती हूं
नजरों ने सवाल किए हैं मुझसे,
नजर का जवाब लिखना चाहती हूं
नजर के पीछे रहता है मकसद,
मकसद को नकाब लिखना चाहती हूँ ।
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उसे पसंद है | USEY PASAND HAI
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
बाते बेहिसाब बताना,
कुछ कहते कहते चुप हो जाना,
उसे जताना, उसे सुनाना,
वो कहता है उसे पसंद है,
ये निगाहें खुला महखाना है,
वो कहता है, दरबान बिठा लो,
हल्का सा वो कहता है, तुम काजल लगा लो,
वेसे ये मेरा शौक नही, पर हाँ, उसे पसंद है,
दुपट्टा एक तरफ ही डाला है,
उसने कहा था की सूट सादा ही पहन लो,
बेशक़ तुम्हारी तो सूरत से उजाला है,
तुम्हारे होठों के पास जो तिल काला है,
बताया था उसने, उसे पसंद है,
वो मिलता है, तो हस देती हूं,
चलते चलते हाथ थाम कर उससे बेपरवाह सब कहती हूं,
और सोहबत मैं उसकी जब चलती है हवाएं,
मैं हवाओं सी मद्धम बहती हूं,
मन्नत पढ़ कर नदी मैं पत्थर फेंकना,
मेरा जाते जाते यू मुड़ कर देखना ,
ओर वो गुज़रे जब इन गलियों से ,
मेरा खिड़की से छत से छूप कर देखना,
हां उसे पसंद है,
झुल्फों को खुला ही रख लेती हूं,
उसके कुल्हड़ से चाय चख लेती हूं,
मैं मंदिर मे सर जब ढक लेती हूं,
वो कहता है उसे पसंद है,
ये झुमका उसकी पसंद का है,
और ये मुस्कुराहट उसे पसंद है,
लोग पूछते है सबब मेरी अदाओ का ,
मैं कहती हूं उसे पसंद है ।
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टूटा खिलौना | Toota Khilona – Nidhi Narwal Poetry
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
मेरी एक तस्वीर है,
लगभग 15 साल पुरानी।
मैं छोटी-सी नज़र आती हूँ उसमें,
छोटी 4 साल की बच्ची,
जिसके दोनों हाथों में दो गुड़ियाँ है
जिनकी हालत बेहद बदतर,बेहद बदतर।
प्लास्टिक की वो गुड़ियाँ,
फटे से लिबास में बिगड़े,
जिसके बाल थे टूटे-फूटे जिनके हाल थे।
उन्हें ट्रोफी की तरह उपर उठाकर,
मैं बिखरे हुए से छोटे बालों में मैं हंस रही रही थी,
जोर-जोर से खिल-खिलाते,
बड़े फक्र के साथ जैसे जीत लिया हो मैंने खोकर कुछ।
दिखा रही थी अपनी मां को अपने टूटे खिलौने,
खिलौने जो मैंने जिद्दी होकर खरीदवाए।
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फिर तोड़-फोड़ कर टुकड़े उनके मैंने पूरे घर में फैलाये।
पर उन टुकड़ों के बीच मैं पूरी थी खुश थी।
मेरा टूटा हुआ दिल यूँ ट्रोफी की तरह उठा नहीं पाती,
दिखा नहीं पाती, मैं मां को दिखा नहीं पाती क्यूँ?
इस बार तो जबकि मैंने खुद ने इसे तोड़ा भी नहीं,
और बिखरे नहीं इनके टुकड़े इसके सिमटे हुए है,
मेरे सीने में चुभते है हर जगह जहन में,
फटा-फटा सा लिबास दिल का कोई दिलचस्प नहीं इसे सीने में क्यूँ ?
और लोग सवाल ही सवाल करते है और सवाल भी बेमिसाल करते है
कहते है दिल टूटा तुम्हारा है भी कभी,
कोई तस्वीर ही नहीं
कोई तस्वीर ही नहीं टूटे दिल के साथ मेरे क्यूँ?
फिर उन्हें क्या जवाब दूँ
देखो दिल तो प्लास्टिक का नहीं है,
दिल प्लास्टिक का नहीं है, दिल बाजार में बिकता नहीं है,
दिल रंगबिरंगा नहीं है, दिल कागज़ की कश्ती या तिरंगा नहीं है,
डिब्बे में पैक होके नहीं आता, दिल चाबी से चलाया नहीं जाता,
जान बसती है दिल में, दिल यूँ ही तो नहीं गुमाया जाता,
तोड़ कर यूँ फर्श पर फैलाया तो नहीं जाता।
और दिल तोड़ने वाले मुस्कुराते है, दिल तोड़कर
दिल तोड़ने वाले मुस्कुराते है, दिल तोड़कर क्यूँ?
ना बाजारो था, ना उनका था तो खोना नहीं था ना,
वो तोड़ गये है कि दिल मेरा, दिल तो खिलौना नहीं था ना
दिल तो खिलौना नहीं था।
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कोई तो हो | Koi To Ho Nidhi Narwal Lyrics
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
कोई तो हो जो सुने तो सुने बस मेरी निगाह को
क्योंकि जुबान पर अक्सर ताले
और नज़रों में बहुत सारी कहानियाँ रखती हूँ मैं
वो मुझसे बात करने आये और कहें
की मुझसे नज़रें मिलाओ
फिर हो यूँ की वो कहें
कि कुछ कहना चाहती हो?
जो नहीं कहना चाहती हो वो तो मैंने सुन लिया
दिल तो हर जगह से टूटा हुआ है मेरा
दिल के हर कोने, हर दीवार में छेद है
मगर कोई तो हो जो झांक कर अंदर आने में दिलचस्पी रखें
झांक कर भागने में नहीं
दिल तो ढेर हो चुका एक घर है
जो मरम्मत नहीं मांगता, बस सोहबत मांगता है
उस शख्स की जो कि इसकी टूटी हुई दीवारों के अन्दर आ कर
इसे जोर जोर से ये बताए कि इसकी बची कुची दीवारे मैली है
जो रंगी जा सकती है
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कुछ देर तो खेली उससे, संभाल कर प्यार से आराम से,
कुछ तस्वीरें टंगी है अब भी पुरानी
जो फेंकी जा सकती है
हाँ वैसे काफी नुकसान हुआ है दर-ओ-दीवार के टूटने से
मगर इसकी बुनियाद अब भी सलामत है
कोई तो हो कि जो देखें तो देखें बस मुझको
कहें मुझसे कि ये मुस्कराहट ना खूबसूरत तो है
मगर ख़ास नहीं
ख़ास है ये ज़ख्म जो तुमने कमाये है पहने नहीं
कहें मुझसे कि ये ख़ुशी मेरी है मैं नहीकहे मुझसे कि जो मैं दिखती हूँ ना वो मैं हूँ नहीं
कहें मुझसे कि मैं अपनी नज़्मों को
अपनी ज़हन के आगे का पर्दा बना कर रखती हूँ
पर्दा जिसके आर पार दिखता है
कहें मुझसे कि मेरी मुस्कुराहटें बस मेरी नाकाम कोशिशें है
अपने जज़्बात पे लगाम लगाने के लिए
कहें मुझसे कि ये नक़ाब उतार कर रख दे तू
और आइना देख महज खुद को देखने के लिए
छुपाने के लिए नहीं
कहें मुझसे कि तू दर्द का चेहरा है
दरारों से भरा हुआ, बिगड़ा हुआ
दर्द जो हसीं है, इश्क़ है
कहें मुझसे की तू दर्द है, हसीं है, इश्क़ है
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चोरी हुई किताब | Chori Hui Kitab
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था
आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा
क्यू कि वो किताब मेरी थी
यह स्कूल की बात है उस किताब पर नाम मेरा लिखा था
तो जाहीर है कि मेरी थी फिर भी कोई दूजा उसे चुरा ले गया
अब चोर काबिल था या ना समझ पता नहीं
पर एक बात हैं तब भी ख्याल आया था
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आज भी आता हैं कि इस चश्म मे तो रहता होगा
वो चोर भी कि पड़ ले समझ ले वो किताब पर
मेरी तरह समझ नहीं पाएगा
क्यू कि वो किताब मेरी थी
उस किताब का 3 4 शेफा मेने हल्का सा फाड़ रखा था
उसने ओर शेफे फाड़ दिये होंगे पर
उस 3 4 शेफे के फटे हुए टुकड़े मेरे पास थे,
शाबित क्या करना था किताब मेरी थी
उस किताब के अंदर रखे हुए कुछ कोरे पन्ने
मे आँगन के फूल की एक पंखुर
ओर एक बोरियत मे बनाये हुआ स्केच उसने फ़ेक दिये होंगे
ताकि यह पता ना लगे किसी को कि वो किताब मेरी थी
एक दिन उस चोर को पकड़ लिया मैंने
मैंने उससे कहा सुनो यह किताब मेरी हैं
उसने किताब पर अपना नाम दिखाया ओर
फटे हुए शेफे दिखाये
ओर बोला नहीं, मैंने कहा सुनो
सुनो धूल जम गई है इस पर
तुम्हारी होती तो यह हसर ना होता इसका
वो चुप हो गया पर माना नहीं की वो किताब मेरी नहीं है
आज के दिन जब मैं तुम्हें किसी ओर की बाहो मे देखती हू
तो तुम्हारी मोहब्बत मुझे उस चोरी हुई किताब सी लगती हैं
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मैं ऐसी नहीं थी | Main Aisi Nahi Thi Poetry
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
जिस रस्ते पे में चल रही थी
मुझे मालूम तक नहीं की जाना कहा है
फिर भी चल रही हु
और जिस रस्ते से होकर मैंने यहाँ
तक का सफर तय किया है
उस रस्ते पर युही यु मेरे कदमो के निशान मुझे दिखाई देते है
मगर फिर भी में मुड़कर उस और
वापस नहीं जा सकती
मन करता है काश कोई एक तो नामुमकिन
ख्वाइश मांगने का हक़ तो दिया होता खुदा ने
तो वापस वह तक जाती जहा से सब शुरू हुआ था
मोहब्बत के लिए नहीं सपनो के लिए नहीं
हसरतो के लिए आगाज़ तक जाती
कुकी मुझे मिलना है खुद से और मिलना है उन लोगो
से जोकि तब मेरे साथ थे
जबकि दिन और हम कुछ और ही थे
आज वो हु और अनजान हु उन लोगो से जो मेरे बगल में,
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मेरे सामने फगत बैठे है या खड़े है
है मगर इन चेहरों से तो वाक़िफ़ हु
मेहबूब से बिछड़ जाना बोहोत दर्दनाक होता है
मेहबूब से बिछड़ जाना दिल में खलील कर देता है
पैर यक़ीन मनो खुद से बिछड़ जाना बेहतर है, कियो
तुम फोटो हाथ में लेकर लोग दर लोग
पूछ नहीं सकते की इसे देखा क्या
तुम अखबार में इस्तेहार नहीं छपवा सकते की ये लापता है
तुम छुप छुप कर देख नहीं सकते,
मालूम नहीं करवा सकते
की वो इंसान जो खो गया है वो खैरियत से है भी या नहीं
तुम अपनी हालत का भला ज़िम्मेदार किसको टेहराओगे
की कौन छोड़ गया तुम्हे यहाँ,
कियुकी वो इंसान तो तुम खुद हो
तुम अगर रुककर एक जगह खड़े होकर शांति से
याद करने की भी कोशिस करोगे न,
तुम कैसे हुआ करते थे
तो यकीन मनो यादो की जगह बस हाल ही मिलेंगे
ये जीती जगती मौत के जैसा है,
तुम ज़िंदा हो ….तुम ज़िंदा हो …
मगर तुम्हारा ज़नाज़ा बिना चार कंधो के ही उठ चूका है
ऐसे में तुम बस बैठ कर अफ़सोस कर सकते हो
और वो करके भी तुम्हे बस अफ़सोस ही मिलेगा
मगर मुझे एक बार रूबरू होना है खुद से
मुझे देखना है,
मुझे जानना है की आज दिन में आखिर कितनी बर्बाद हु
या और कितनी और मोहलत बची है मेरे पास,
ज़िन्दगी तक वापस आने की
में ये एक खाल का लिबास जिसमे खवाब, मोहब्बत, दर्द,
जिसमजु कुछ भी नहीं है
में ये नहीं हु,
में मेरी रूह को कही पीछे छोड़ आयी हु
मुझे वापस जाना है
में अनजान बानी बोहोत दूर तक आचुकी हु
मुझे एक बार आगाज़ तक ले चलो,
यकीन मनो
मैं ऐसी नहीं हूँ ।
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चक्कर | Chakkar by Nidhi Narwal
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
किसी भी रिश्ते मे रूठना मानना चलता है
कभी कभी दूरिया भी आ जाती है
बहुत ज्यादा मगर यार ऐसा है
कि अगर तुम्हारे दिल मे और उस शख्स
के दिल में तुम्हारे लिए और तुम्हारे दिल
मे उस शख्स के लिए जो फिक्र हैं
ना वो सच्ची है तो तुम्हें ये बात हमेशा
याद रखनी चाहिए कि जो दूरिया है
ये बस कुछ पल की है और अक्सर बातें
याद रखने के लिए हम क्या करते हैं
तो यही बात खुद को याद दिलाने के
लिए लिखा हैं मेने एक ख्याल चक्कर
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एक बहुत बाड़ा गोल सा चक्कर है
किसी मैराथन ट्रैक के जैसा
इस चक्कर का अखिर चक्कर क्या है
देखो इस चक्कर पर न तुम और मैं
खड़े हैं तुम नहीं तुम और मैं मगर एक
दूसरे की तरफ पीठ करके
तुम उस तरफ मुह किए हो और मैं
इस तरफ क्युकी अभी अभी हम दोनों
ने अपनी अपनी अना को अपनी अपनी
मोहब्बत से उपर रखकर ये तय किया है
कि अब से तुम उस तरफ चलोगे और
मैं इस तरफ कुछ फैसले लिए है
कि अब से ये राहें अलग अलग हैं
अब से हाथ पकड़कर क्या हाथ छोडकर
भी साथ नहीं चलना
तुम रोने लगे तुम्हारे पास भागते
हुए नहीं आना हैं और अगर मैं गिरने
लगी तो तुम ये हरगिज़ नहीं दिखाओगे
कि तुम अब भी परवाह करते हो
और पीछे नहीं मुड़ना याद रखना
पीछे नहीं मुङना याद रखना बिल्कुल
ऐसा ही करना हैं अलग अलग चलना है
अकेले चलना हैं चलते जाना है
एक दूसरे से दूर होते जाना हैं और
पीछे मुड़कर नहीं देखना हैं टस से मस
नहीं होना है चाहे कुछ भी हो जाए
1 सेकंड,
तब क्या होगा जब इस बड़े से चक्कर की
ये दो राहे जिन पर हम अलग अलग
चल रहे हैं ये दोनों एक दूसरे की तरफ
आने लगेंगे तुम यहा आने लगोगे मैं वहां
जाने लगूंगा ना तुम वापिस मुड़ पाओगे
ना मैं वापिस मुड़ पाउंगा क्युकी पीछे नहीं
मुड़ ना हैं ये तो हमने तय किया था और
चलो मान ले मुड़ जाते हैं दोनों मे से
अगर कोई भी एक शख्स मुड़ा और वो
दूसरा नहीं मुड़ा तो वो एक दूसरे के पीछे
चलने लग जाएगा और मानो अगर दोनों
के दोनों मुड़ गए तो वो दोनों एक दूसरे
की तरफ चलने लग जाऐंगे ये सिलसिला
चलता रहेगा तुम और मैं चलते रहेंगे
कभी इस तरफ कभी उस तरफ और घूमते
फिरते कभी एक दूसरे की तरफ और
वेसे ना अलग अलग दिशा मे चलने मे भी
मुझे कोई ऐतराज़ नहीं क्युकी देखो दो
लोग है एक यहा खड़ा है एक यहा खड़ा हैं
ईन दो लोगों को अगर एक दूसरे से दूर
जाना हैं तो अलग अलग दिशा मे चलना
पड़ेगा मगर अगर उन लोगों को एक
दूसरे के करीब आना है तो भी अलग
अलग दिशा मे ही चलना पड़ेगा
तुम्हारा और मेरा रिश्ता महज एक चक्कर
के जेसा है तुम यहा जाओ या यहा वहा
जाओ तुम कहीं ना कहीं मुझसे टकरा ही
जाओगे और फिर अलग अलग भी चलोगे
घूम फिर कर मेरे पास ही आओगे अब
ज़माना यू ही थोड़ी ना कहता हैं कि
इसका और इसका चक्कर चल रहा है
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Andhera | अंधेरा – निधि नरवाल
Nidhi Narwal Poetry In Hindi
अंधेरा बेवजह ही बदनाम है,
मुझे रोशनी ज्यादा मानहूश लगती है
अंधेरा नींद मुकम्मल करता है,
रोशनी कस कर आंखों में चुभती है
मुझसे रोशनी में लिखा भी नहीं जाता,
हर्फ़ दिखते हैं, लवज़ दिखते हैं,
स्याही कलम और कागज दिखते हैं
कोई जज्बात मगर नजर ही नहीं आता ।
रोशनी में रोशनी में अस्क बेझिझक बहते ही नहीं,
होंठ फर्जी मुस्काते हैं
कोई देख ना ले इस रोशनी में
जख्म हम सब से छुपाते हैं
नहीं जाते किसी की नजरों तक ये जख्म ये दर्द अंधेरे में
यह बत्तियां बुझा दो अभी के अभी मुझसे सोया नहीं जाता
यह तीर के जैसी लगती हैं आंखों में
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ख्वाबों को तोड़ने वाला यह कमबख्त सवेरा नहीं चाहिए
जो आंख खुलते ही पलकों पर अफसोस लेकर आए कि
हाय मेरा एक ख्वाब टूट गया
मुझे रात पसंद है हुकुम से बैठा चांद का हर दाग पसंद है
अंधेरा सच है मेरा मेरे कमरे और कल्व का हालत है
अंधेरा गुमशुदा जज्बात है बीत गया उस कल के जैसा और
अंधेरा आज है यह आसमान तो नीला ही है
अंधेरा कोई परवाज है उन परिंदों का कि जो कमर से जा टकरा गए
उसे ले आने की इश्तियाक मे टूट कर घर आ गए
अंधेरा खास है एक तन्हा भीड़ है ख्वाबों की तन्हाई का एहसास भी पर
अंधेरा तनहाई का साथ नहीं है अंधेरा एक अकेला बच्चा है जो खौफ खाता नहीं ।
जैसा भी है रोशनी से तो अच्छा है
अंधेरा अंधेरे में मेरी परछाई नहीं हूबहू मुझे मैं खुद नजर आती हूं
अंधेरा आइना है मेरा अंधेरे में मुझे आँशु छुपाने नहीं पढ़ते
अंधेरे में मुझे नकाब लगाने नहीं पड़ते ।
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(निधि नरवाल Youtube chennal – Click Now )
अंतिम शब्द – Nidhi Narwal Poetry In Hindi
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