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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

 हिन्दी मे 

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया  दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया 

मौत का एक दिन मुअय्यन है  नींद क्यूँ रात भर नहीं आती 

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह  कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता 

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे  होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया  वर्ना हम भी आदमी थे काम के 

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा  लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का  उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले