- जे.k.raज
लम्हा दर लम्हा गुजरती है जिंदगी इन्हीं स्याह रातों के अंधेरों में
चुपचाप अंधेरों में कहीं खो जाता हूं मैं , ना जाने किस सोच में डूब जाता हूं।
इंतजार है या बस लम्हों के बीतने का एहसास, या शायद कुछ महसूस करने की चाहत ।
लेकिन ये दिल अब खामोश रहता है, कोरे कागज सा खयालों की बारिश में नाव वन बहता रहता है ।
मैं धड़कनों को फिर सुनना चाहता हूं , उस कश्ती में डूबे ख्वाबों को जीना चाहता हूं ।
बस आज भी खामोशी सहे जा रहा हूं , चुपचाप अंधेरों में कहीं जिए जा रहा हूं ।
चुपचाप अंधेरों में कहीं खोए जा रहा हूं !!